रक्खा है 

क्या कहें किस कदर अश्कों को रोक रक्खा है

आँसूओं का भरा हुआ सैलाब ही जो सोख रक्खा है

तेरी बेवफाई ने वफा को जो खामोश कर दिया

कलम से लिख लिख कर, दिल कलम कर के रक्खा है

साँस घुंटती है जैसे पानी के अंदर ही अंदर

मौत को भी हमने ऐसे ही तो, जबरन दबोच रक्खा है

कुछ जख्मों के घाव न सूजन दिखती है कभी

खौले पानी में हात, रूख पे तबस्सुम जमा के रक्खा है

आधे जहाँ के पीछे कितना घना घना अंधेरा

नूरानी आँखों में हमने अपनी ही राख छुपा के रक्खा है

तेरे वो साथ जीने के वो साथ मरने के इरादे

यादों को घोल घोल हमने, जहन्नुम बना के रक्खा है

हम मर भी तो जाते पर क्या करें हम अब

तुम उस जहाँ में हो ही नहीं, इस बात ने रोक रक्खा है

तेरी नशीली आँखें, बिखरी हसीन जुल्फों को

एक को जहर दुसरे को हमने उम्रकैद बना के रक्खा है

जो तुम ही नहीं, जन्नत जहन्नुम में भी क्या रक्खा है

तेरी चाहत में रोज तड़पने को, जीना बना के रक्खा है 

– शेख़ महम्मद शरीफ़ ई.

6 thoughts on “रक्खा है 

Add yours

Leave a comment

Blog at WordPress.com.

Up ↑