मैं और मय में क्या अहम?जिंदगी क्या?है एक वहम?गैर हैं?या एक ही?ये तुम और हम?करेगा दिल?खुद पर ही तूकुछ तो रहेम?लाख नखरेरहने देदर्द सहुंगासहने देआग हूंतो जलने देआब हूंतो बहने देअहम क्या है?क्या पता?तू कहां है?लापता?कोई ना खुद से राब्तामिलेगा भी तू?तू बता...?
कैसे?
तेरी तस्वीर मैं सीने से लगाऊँ कैसे? दिल से निकाल के पन्नो पे छपाऊँ कैसे? तुझे चाहता है कोई खुद से भी जियादा दिल का इस फैसला तुझे बताऊँ कैसे? बस तेरी तस्वीर छपी है मेरे इस दिल में तू ही तू है बस क्यूँ मेरी हर इक मंजिल में तुझे इतना टुट कर चाहता... Continue Reading →
वो मुझ से
वो मुझसे दूर है बहुत, मैं उस से दूर हूं बहुत कितने फासले हैं फिर भी, वादों का मिजाज, कुछ कम नहीं होता शेख़ महम्मद शरीफ़ ई.
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